600 km brm
8 sept 2018 को 600 brm थी।उसके पहले ही बहुत टेंशन होने लग गया था।600 km साईकल चलाना कोई मजाक नही है 40 घण्टे ।
एक दिन पहले मैंने अपने मन मे वैराग्य का भाव पैदा कर लिया कि मैं 600 कर लूंगा तो भी योगेंद्र व्यास ही रहूंगा नही किया तो भी योगेंद्र व्यास ही रहूंगा।भगवान भरोसे नैय्या छोड़ दी जो होगा देखा जाएगा।ऐसा सोचने से इतनी हिम्मत आ गयी कि स्टार्टिंग लाइन पर तो पहुचना ही है ।
मेरे लेफ्ट घुटने में दर्द एक माह से बना हुआ था उससे डर ये लग रहा था कि कही मेरा घुटना खराब न हो जाये।600 km 40 घण्टे साइकिलिंग करना है।नींद तो मैंने अच्छे से ली थी दो दिन पहले।
साईकल की सर्विसिंग जितेंद्र खत्री जी से करवाई थी 7 दिन पहले ।पेडल में टिक टिक की आवाज खत्म नही हो रही थी तो 2 दिन पहले महेश करड़ा साईकल वर्ल्ड से भी सर्विसिंग करवाई।
नीरज याग्निक भैया ने काफी टिप्स दी कि कैसे करना है 600 km
जितेंद्र खत्री,प्रवीण पराशर,पारस जैन,से भी टिप्स ली।
सभी की टिप्स से काफी फायदा हुआ।
600 brm सरल नही है एक प्रकार से पागलपन है।यह मेरी तरफ से आखिरी बार का पागलपन था।
में अब कभी भी brm नही करूँगा ।मैंने सन्यास ले लिया है।ये ब्लॉग सबूत रहेगा।में सभी को साइकिलिंग के लिए प्रेरित करता रहूंगा और छोटी मोटी राइड करता रहूंगा।मेरा ये व्यक्तिगत फैसला है।सभी जिन्हें मजा आता है वो जरूर करे।मुझे ऐसा लगता है कि इंदौर भोपाल हाईवे साईकल के लिए नही है।वो बड़े कंटेनर,ट्रक,चार्टर्ड बस,और स्पोर्ट्स व्हीकल और कारो के लिए है।पूरी तरह से जान का जोखम होता है।भगवान कि दया से हमारे सभी साइकिलिस्ट सुरक्षित रहे है।आगे भी सुरक्षित रहे।ऐसी कामना है।
हमे रात में पीछे से लाइट के साथ कार की परमिशन मिलना चाहिए।और पहले साईकल वर्ल्ड से यूसुफ चला करते थे पंक्चर बनाने के लिए वैसी व्यवस्था होना चाहिए।
खैर ।मैंने तो सन्यास ले लिया है।अब रात में कोई भी साइकिलिंग नही करूँगा मतलब 300,400,600।
मुझ पर किसी को भरोसा नही है कि मैंने सन्यास ले लिया है ।
हाँ,अब इस 600 कि कहानी ।सुबह घर से एक आलू परांठा खा कर निकला और रास्ते के लिए 2 आलू परांठे,कुछ चिक्की,काजू और बादाम फ्राइड किये हुए,पल्स टॉफ़ी,कॉफ़ी पाउच।
नेहरू स्टेडियम तक साईकल से ही गया ।हेमा ने बहुत ध्यान रखा बारिश हो रही थी मुझे रेनकोट पहना कर भेजा कि नेहरू स्टेडियम तक तो नही भिगो।वहाँ पर हेमा कार से आई।
मेरे घर के सदस्यों में हेमा,माधवी बरनिया,मनीष शर्मा,डॉ जितेंद्र बरनिया ने बहुत मेरी देखभाल की और उसके कारण ही मेरा brm हो पाया।राऊ सर्किल पर 287 km पर तो वापस राऊ सायकोसिस होने लगी कि छोड़ दो और घर जाओ परंतु मनीष शर्मा बज्जू मेरे साले साहब तत्परता से खड़े थे।मैंने पपाया रेस्टोरेंट के सामने ही जमीन पर 10 मिनट की पावर नेप ली।
डॉ जितेंद्र बरनिया मेरे साढू भाई और हेमा रात भर मेरी व्हाट्सएप की लाइव लोकेशन से देख रहे थे।3 बजे शिप्रा पर मिले और फिर सुबह साढ़े छह बजे तक साथ थे।सृष्टि क्लब में 4 से साढ़े 5बजे तक आराम किया,खाना खाया ,नहा कर फ्रेश हुआ।सभी घर के लोग रात को नही सोये।
नेहरू स्टेडियम से साइकिलिंग स्टार्ट की 6 बजे आराम से चला रहा था कोई टेंशन नही था।1 घण्टे बाद कि बूँदा बाँदी होने लगी।साईकल पर पीछे मडगार्ड न होने से पूरे कपड़े और बैग पैक गंदा हो गया।पीथमपुर के बाद तेज हेड विंड और तेज बारिश के कारण साईकल चलाना मुश्किल हो रहा था।एवरेज स्पीड 16 की थी जबकि पिछली बार रतलाम 20 की स्पीड से 8 घण्टे में पहुच गए थे।मेरे पास आलू पराठे थे इसलिए बीच बीच मे एक दो piece खाते हुए साईकल चला रहा था।बीच मे स्टॉपेज नही के बराबर लिए।स्लो और स्टेडी पेस में साईकल चला रहा था।रतलाम 3 .45पर पहुँचा और थोड़े से दाल चावल खाकर आधे घण्टे में निकल गया।रतलाम में नितिन फिरोदिया मिल गए वो मेरे लिए विंड शीटर लेकर आये की बारिश में ठंड न लग जाये ।नितिन डॉ जितेंद्र के कहने पर आया था।थैंक्स जितेंद्र । वापसी में बारिश रुक गयी थी और एक स्पीड में साईकल चला रहा था।रतलाम से राऊ तक कोई साथ नही मिला।मुझे डर भी था कि पिछली बार जैसे इस बार भी रास्ता न भटक जाऊं।पिछली बार घाटा बिल्लोद पर रास्ता भटक गया था ।अंधेरे में गाड़ी चलाना बहुत जोखिम का काम होता है ।रास्ते मे पानी ,ors,काजू,बादाम ,चिक्की खाता हुआ चल रहा था।राहुल की साईकल बहुत पंक्चर हो रही थी एक जगह में रुका पंक्चर बन चुका था।मैंने राहुल से कहा कि में आगे आगे चलता हूं में स्लो राइडर हु तुम मुझे कैच कर लोगे।परंतु राऊ तक कोई नही मिला।राऊ पर डॉ बबिता केसवानी मैडम मिली उन्होंने कहाँ की खाना खा लो ,मैंने उन्हें बताया कि मैंने केला और फ्रुइटी ले ली जो मनीष शर्मा लाये थे।
फिर डॉ मंगल मिल गए वो मिले और मेरा उत्साह बढ़ाया।फिर अंधेरे में बाईपास पर साईकल चलाता रहा 57 km राऊ से सृष्टि क्लब तक 3 से साढ़े 3 घण्टे में पहुच गया।नींद इतनी आ रही थी कि पिपलियहाना के पास बाईपास के उतार पर मुझे 2 गाय रोड क्रॉस करते दिखी मैने साईकल स्लो की की गाय निकल जाए परंतु देखा कि कोई गाय नही है मेरा मतिभ्रम था जिसे हम डॉक्टर्स visual hallucination कहते है।नींद के झोंके रोकने के लिए में राम राम ,कृष्णा,कृष्णा की chanting करने लगा ।खैर सुबह 5.30 पर सृष्टि क्लब से निकला तो 110 km का टारगेट था ।साढ़े 6 घण्टे में ।पहले घण्टे में 26 km साईकल चलाई की 12 बजे के पहले क्रिसेंट पहुचना है।तेज साईकल चलाने से थकान बढ़ गयी फिर धीरे धीरे चलाने लगा।मेरी कैलकुलेशन गलत हो गयी एक जगह देखा कि 41 km सिहोर है मुझे लगा कि sign बोर्ड गलत है ।मेरे हिसाब से 30 km ही था ।फिर इतना टेंशन हुआ कि घड़ी भी नही देखी और 2 घण्टे में 40 km से ज्यादा कवर कर कर 11.30 पर सिहोर पहुच गया ।बहुत खुश हुआ।मुझे तो डर था कि एक आध मिनट पहले ही पहुँचूँगा।
वहाँ पर मैने एक बहुत बड़ी गलती कर दी कि एक बड़ा सैंडविच खा लिया और चाय पीकर निकल गया ।मुझे थोड़े से दाल चावल ही खाना थे परंतु वो उपलब्ध नही थे।इतनी नींद आ रही थी सैंडविच खाने के बाद कि सिहोर से 2 km बाद ही एक ढाबे पर 10 मिनट सो गया।ढाई घण्टे में 40 km चलाना थी और मैंने 25 km ही चलाई।जब सैंडविच कुछ हजम हुआ तो साईकल चला पाया।
फिर कोका कोला पिया,कॉफ़ी पाउडर डायरेक्ट मुँह में डाल कर पानी पी लिया।एक जगह से माजा की बोतल में senda नमक डाल कर पी।शाम को 7 बजे तक काफी फ़ास्ट साइकिलिंग की और 7 बजे 40 km बाकी थे।मेरे garmin के हिसाब से ।परंतु जब फिनिश किया तो घड़ी ने 608 km बताये मतलब 3 घण्टे में 48 km साइकिलिंग करना थी में 40 समझ रहा था।सोनकच्छ से देवास 29 km होता है।17 km तो अंधेरे के पहले निकल गए उसके बाद के12 km में 1 घण्टा लग गया कुछ भी नही दिखता है।तेज गाड़िया निकलती तो ऐसा लगता कि अब मरे।बहुत डरा में जैसे ही देवास से इंदौर के मोड पर पहुचा तो देखा कि समय 8 बजकर 4 मिनट हुए है और 30 km बचे है ।570 km हो गए थे ।मुझे विश्वास था कि में समय से पहुच जाऊंगा।डॉ आलोक जैन साईकल ले कर आ गए वो पूरे 38 km तक मेरे पेसर बनकर आगे आगे गाड़ी भगा रहे थे।मेरी कैलकुलेशन गलत थी 30 कि बजाय 38 km करना था2 घण्टे से कम समय मे।मैंने एक और बड़ी गलती की की ब्रिज से जाने की बजाय नीचे से आया जिससे कि 36 से ज्यादा स्पीड ब्रेकर और 9 अंडरपास के ट्रैफिक के कारण मेरी स्पीड कम हुई ।उस समय आलोक ने जो कहा वो कर लिया परंतु बाद में लगा कि मुझे रुक कर वाच देखना थी कि स्पीड घट रही है तो ब्रिज पर जाने का फैसला कर लेना था।खैर ।अर्पित जैन ,राहुल,अजय झांग,डॉ रजनीश ,डॉ श्याम झा,आदि को देखकर खुश हो गया ।late finish ही क्यो न हो आखिरी में 600 km हो ही गयी ।12 मिनट की देरी हुई यदि इतनी गलती के बाद भी ऊपर ब्रिज से आता तो समय से आ जाता।
हरिकृपा हुई कि 600 हो गया और हरि इच्छा थी कि समय से न हो ।
आशा है कि जो गलतियां मैंने की वो दूसरे लोग न करे ।कभी भी ज्यादा न खाए और ज्यादा आत्मविश्वास में न रहे।
सभी मित्रों को वापस से बहुत बहुत धन्यवाद जिन्होंने मुझे ऐसा कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया।
सभी को एक लंबा ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद।ये मेरे अपने व्यक्तिगत विचार है।कृपया अन्यथा न ले।
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